When Smiles Hide Scars


कभी सोचा था 

चुनौतियों के उस पार सुकून होगा,

हर आँसू के बाद एक मुस्कुराहट होगी,

लेकिन ये ज़िंदगी...

बस समझौतों की गलियों में भटकती रही।


हर सुबह उम्मीदों की चादर ओढ़कर उठे,

हर रात टूटे सपनों को सीते रहे,

हम थकते रहे, झुकते रहे,

मगर मंज़िलों ने कभी पलट कर नहीं देखा।


ना कोई ख़ुशी मुकम्मल लगी,

ना कोई ग़म अधूरा था,

कुछ भी माँगा नहीं था तक़दीर से,

बस थोड़ी सी राहत चाहिए थी।


कभी किसी मोड़ पर सोचा 

क्या मेरी दुआओं की आवाज़ कहीं पहुँचती है?

या फिर ये आसमां भी

ख़ामोश तमाशबीन है?


देखा है 

कुछ लोग हर हाल में मुस्कुराते हैं,

क्योंकि रोने के लिए भी

अब जगह नहीं बची उनके अंदर।


और कुछ ऐसे भी 

जिन्हें सबकुछ मिला,

मगर कभी क़दर ना की तन्हा शामों की,

या टूटे ख्वाबों की।


फिर सोचा...

क्यों है ऐसा कि जो रोता है,

वो ग़लत ठहराया जाता है?

और जो मुस्कुराता है,

उससे कोई सवाल नहीं पूछता?


ज़िंदगी शायद एक खेल है 

जिसमें नियम बदलते रहते हैं,

और खिलाड़ी हर मोड़ पर

ख़ुद को ही भूल जाता है।


अब तो ये हाल है 

ना कोई शिकवा है, ना कोई शिकायत,

बस एक खामोश रिश्ता है

मेरे और मेरी उम्मीदों के बीच।


© विजय कमल 



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